मध्यप्रदेश में पंचायती राज्य व्यवस्था

73वें  संविधान संशोधन के बाद देश में मध्य प्रदेश पंचायती राज के चुनाव करवाने वाला प्रथम राज्य था मध्य प्रदेश में पंचायती राज एवं नगरीय स्वशासन के विकास को जानने से पहले भारत में पंचायती राज्य का विकास किस तरह हुआ इसे समझना आवश्यक है

पंचायती राज व्यवस्था का विकास

  •  स्थानीय स्वशासन का जनक लॉर्ड रिपन को माना जाता है 1882 में लार्ड रिपन के द्वारा स्थानीय स्वशासन संबंधी प्रस्ताव लाया गया
  • लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग बलवंत राय मेहता ने किया
  • स्थानीय स्वशासन राज्य सूची का विषय है 

अनुच्छेद 40 में राज्यों द्वारा ग्राम पंचायत के गठन का उल्लेख है नीति निदेशक तत्व (DPSP) में उल्लेख होने के कारण यह वाद योग्य नहीं है इसलिए अनुच्छेद 40 लागू करने के लिए राज्य बाध्यकारी नहीं थे

सामुदायिक विकास कार्यक्रम

  • 1952 में सामुदायिक विकास कार्यक्रम का प्रारंभ किया गया , 1953 में राष्ट्रीय सविस्तार योजना लागू की गई ।
  •  दोनों कार्यक्रमों का उद्देश सामान्य जनता को अधिक से अधिक विकास प्रक्रिया में  सहभागी  किया जाना था , परंतु दोनों ही कार्यक्रम असफल रहे
  • दोनों कार्यक्रमों की असफलता का कारण योजनाएं सरकारी अधिकारियों तक सीमित रहना तथा नौकरशाही द्वारा रुचि ना लेना था

बलवंत राय मेहता समिति

1957 में सामुदायिक विकास कार्यक्रम तथा राष्ट्रीय सविस्तार योजना की असफलता का विश्लेषण करने बलवंत राय मेहता समिति (ग्रामोद्धार समिति) का गठन किया गया

बलवंत राय मेहता समिति ने दोनों कार्यक्रमों की असफलता का कारण अधिकतम केंद्रीकरण बताया

बलवंत राय मेहता ने लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण शब्द दिया था , इसलिए बलवंत राय मेहता को लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण का जनक कहा जाता है

लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण के लिए बलवंत राय मेहता ने त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की सिफारिश की

त्रिस्तरीय पंचायतीराज के स्तर

  1. ग्राम या नगर पंचायत

  2.  विकासखंड या ब्लॉक स्तर पर पंचायत समिति

  3. जिला स्तर पर जिला परिषद

बनाने की सिफारिश की

बलवंत राय मेहता समिति की सिफारिशें 1 अप्रैल 1958 को लागू की गई इसकी सिफारिशों के आधार पर सर्वप्रथम 2 अक्टूबर 1959 को राजस्थान के नागौर जिले के बगदरी गांव में जवाहरलाल नेहरू द्वारा पंचायती राज व्यवस्था की स्थापना की गई इसलिए भारत में जवाहरलाल नेहरू को पंचायती राज व्यवस्था का संस्थापक कहा जाता है  राजस्थान के बाद आंध्र प्रदेश में पंचायती राज अधिनियम लागू किया गया ।

त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था वाले राज्य

मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिल नाडु इत्यादि राज्यों में है 

अशोक मेहता समिति

 1977 मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्री काल में अशोक मेहता समिति का गठन किया गया इस समिति ने दो स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की सिफारिश जिसके अंतर्गत 

दो स्तरीय पंचायती राज के स्तर

  1. जिला परिषद 

  2. मंडल पंचायत

 अशोक मेहता समिति ने ग्राम पंचायतों की जगह मंडल पंचायत की सिफारिश की थी अशोक मेहता की सिफारिश के अनुसार पंचायत चुनाव दलीय आधार पर होने चाहिए तथा पंचायतों को धन जुटाने के लिए कर लगाने की शक्ति देना चाहिए अशोक मेहता समिति ने सर्वप्रथम पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा देने की सिफारिश की परंतु अशोक मेहता समिति के सभी सुझाव  नामंजूर कर दीजिए गए

दो स्तरीय पंचायती स्तर वाले राज्य

हरियाणा, असम, कर्नाटक, उड़ीसा, दिल्ली, पांडिचेरी राज्यों में  दो स्तरीय पंचायती व्यवस्था है

Note – जनजाति परिषद मेघालय, नागालैंड, मिजोरम में है 

डॉ जी बी के राव समिति 1985

 इस समिति ने पंचायतों का चुनाव नियमित करवाने तथा विकेंद्रीकरण की बात कही इस समिति ने एससी एसटी व महिलाओं को आरक्षण देने की सिफारिश की 

पंचायत में चार स्तरीय पंचायती व्यवस्था की सिफारिश डॉक्टर जीवीके राव समिति के द्वारा की गई

चार स्तरीय पंचायत के स्तर 

  1. राज्य स्तर पर राज्य विकास परिषद

  2.  जिला स्तर पर जिला विकास परिषद 

  3. मंडल स्तर पर मंडल पंचायत

  4.  ग्राम स्तर पर ग्राम सभा

  वर्तमान में पश्चिम बंगाल में चार स्तरीय पंचायती व्यवस्था लागू है

  लक्ष्मी मल सिंघवी समिति 1986

           पंचायतों को संवैधानिक दर्जा एम एल सिंघवी समिति की सिफारिशों के आधार पर दिया गया तथा इस समिति ने पंचायतों को आर्थिक संसाधन उपलब्ध कराने की बात भी कही

पी के थुंगन समिति 1988

थुंगन समिति ने पंचायती राज संस्थाओं को संविधान में स्थान देने की बात की

 

बी एन गाडगिल समिति 1989

गैर दलीय आधार पर चुनाव करवाने की सिफारिश बीएन गाडगिल के द्वारा की गई तथा संवैधानिक दर्जा देने की बात भी इनके द्वारा कही गई पंचायतों को कर लगाने व वसूलने का अधिकार होना चाहिए पंचायतों के तीनों स्तरों में जनसंख्या के आधार पर अनुसूचित जाति जनजाति और महिलाओं के लिए आरक्षण का सुझाव दिया त्रिस्तरीय पंचायती राज संस्थाओं में कार्यकाल 5 वर्ष रखने का प्रस्ताव दिया पंचायतों के लिए वित्त आयोग के गठन की बात कही जिससे पंचायत आर्थिक सक्षम हो सकें 

64 वा संविधान संशोधन विधायक

 जुलाई 1989 राजीव गांधी सरकार के समय बी एन गाडगिल और  एम एल सिंघवी समितियां की सिफारिश  के फलस्वरुप 64 वा संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश किया गया तथा अगस्त 1989  लोकसभा में पारित कर दिया गया लेकिन कांग्रेस के पास राज्यसभा में बहुमत न होने के कारण यह विधेयक पास नहीं हो सका 

पंचायती राज अधिनियम 1992

73 वा संविधान संशोधन विधेयक 1992 में पीवी नरसिंह राव प्रधानमंत्री के कार्यकाल में आया तथा यह 24 अप्रैल 1993 को पंचायती राज्य व्यवस्था को संवैधानिक मान्यता मिली 24 अप्रैल पंचायती राज दिवस के रूप में  मनाया जाता है मूल संविधान के भाग 9 मे अनुच्छेद 243 के अंतर्गत पंचायती राज को रखा गया है भाग 9 पंचायत नामक शीर्षक के अंतर्गत अनुच्छेद 243 से 243(O)पंचायती राज्य का उल्लेख है अनुच्छेदों की कुल संख्या  16 है  73वे संविधान संशोधन द्वारा संविधान में 11वीं अनुसूची जोड़ी गई जिसमें पंचायत को 29 विषय का उल्लेख है  जिन पर पंचायतें कार्य कर सकती हैं

 

मध्य प्रदेश में पंचायती राज एवं नगरी प्रशासन

मध्य प्रदेश में पंचायती राज व्यवस्था

1957 में काशी प्रसाद पांडे समिति ने पंचायती राज व्यवस्था को स्थापित करने के लिए जो सुझाव दिए उनके आधार पर मध्य प्रदेश राज अधिनियम 1962 का क्रियान्वयन किया गया तथा इस सिफारिश के आधार पर मध्यप्रदेश में ग्राम पंचायत स्तर पर 1962 में चुनाव करवाए गए मध्यप्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत प्रणाली अक्टूबर 1985 में सर्वप्रथम लागू की गई 

मध्यप्रदेश में “73 वा संविधान संशोधन अधिनियम 1992” को लागू करने के लिए 30 दिसंबर 1993 को “मध्य प्रदेश पंचायती राज अधिनियम 1993”  रखा गया तथा जो 25 जनवरी 1994 को पारित 20 अगस्त 1994 को लागू हो गया हुआ 73वें संविधान संशोधन के आधार पर पंचायत चुनाव करवाने वाला मध्यप्रदेश देश का प्रथम राज्य है तथा इस अधिनियम के अनुसार मध्यप्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायती व्यवस्था को मान्यता प्रदान की गई तीनों स्तरों पर कार्यकाल 5 वर्ष निर्धारित किया गया मध्यप्रदेश में 25 जनवरी को प्रतिवर्ष मतदाता दिवस मनाया जाता है

मध्यप्रदेश में पंचायत के निम्न तीन स्तर हैं

ग्राम पंचायत 

1000 की आबादी या उससे अधिक आबादी वाले एक या एक से अधिक गांव को मिलाकर ग्राम पंचायत का गठन किया जाता है

 ग्राम पंचायत में जनसंख्या के अनुपात में न्यूनतम  10 तथा अधिकतम 20 वार्डो का गठन किया जाएगा गांव के सभी वयस्क व्यक्ति ग्राम सभा के सदस्य होंगे  इन्हीं के द्वारा सरपंच व पंच का चुनाव प्रत्यक्ष विधि से किया जाता है ग्राम पंचायत का मुखिया सरपंच होगा जो प्रत्यक्ष रूप से चुना जाता है तथा पंच भी प्रत्यक्ष रूप से चुने जाएंगे परंतु उपसरपंच का चुनाव पंचो के द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से किया जाएगा ग्राम पंचायत का अधिकारी सचिव होता है सरपंच ग्राम निर्माण समिति और ग्राम विकास समिति का पदेन अध्यक्ष होता है वर्तमान में मध्यप्रदेश में कुल 23050 ग्राम पंचायते है  मध्यप्रदेश में पंचायती राज व्यवस्था में राइट टू रिकॉल का अधिकार दिया गया है इसके अंतर्गत सरपंच निर्वाचित होने के 2 वर्ष के बाद दो तिहाई बहुमत द्वारा हटाया जा सकता है राइट टू रिकाल का सर्वप्रथम प्रयोग अनूपपुर जिले में पल्लविका पटेल को हटाने के लिए किया गया था मध्यप्रदेश स्थानीय निकायों में राइट टू रिकॉल का प्रावधान लागू करने वाला देश का प्रथम राज्य है

 

जनपद पंचायत

 वर्तमान में मध्यप्रदेश में 313 जनपद पंचायत है जनपद पंचायत का गठन विकासखंड स्तर पर किया जाता है पंचायती राज व्यवस्था में जनपद पंचायत मध्य स्तर कहलाता है जनपद पंचायतों में न्यूनतम वार्ड संख्या 10 व अधिकतम 25 होती है 5000 आबादी पर एक निर्वाचन वार्ड होगा परंतु विकासखंड की जनसंख्या 50000 से कम होने पर भी न्यूनतम 10 निर्वाचन वार्ड होंगे कुल निर्वाचन वार्डों की संख्या 25 से अधिक नहीं होगी जनपद पंचायत के सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा किया जाता है जबकि जनपद पंचायत अध्यक्ष व उपाध्यक्ष का चुनाव जनपद सदस्यों द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से किया जाता है जनपद पंचायत का राजनीतिक प्रमुख जनपद पंचायत अध्यक्ष होता है तथा प्रशासनिक प्रमुख मुख्य कार्यपालन अधिकारी होता है जो लोक सेवा आयोग द्वारा चयनित अधिकारी होता है जनपद पंचायत में उस क्षेत्र के सरपंच विधायक सांसद सहकारी बैंकों के अध्यक्ष पदेन सदस्य होते हैं

 

जिला पंचायत

 वर्तमान में मध्यप्रदेश में 52 जिले हैं तथा प्रत्येक जिले में जिला पंचायत होती है जिला पंचायत में निर्वाचन वार्डों की न्यूनतम संख्या 10 तथा अधिकतम संख्या 35 होती है जिला पंचायतों के गठन के लिए 50,000 आबादी के लिए एक निर्वाचन वार्ड होगा जिले की आबादी 5 लाख से कम होने पर कम से कम 10 निर्वाचन वार्ड होंगे किंतु कुल निर्वाचन वार्डों की संख्या 35 से अधिक नहीं होगी जिला पंचायत सदस्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं परंतु अध्यक्ष व उपाध्यक्ष का चुनाव जिला पंचायत सदस्यों द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से किया जाता है जिला पंचायत का राजनीतिक प्रमुख जिला पंचायत अध्यक्ष होता है तथा प्रशासनिक प्रमुख मुख्य कार्यपालन अधिकारी जो भारतीय प्रशासनिक सेवा(IAS) का सदस्य होता है जिला पंचायत में संबंधित क्षेत्र के विधायक सांसद सहकारी बैंक के अध्यक्ष पदेन सदस्य होते हैं

 74 वां संविधान संशोधन

74वां संविधान संशोधन अधिनियम 1992 द्वारा नगर पालिकानिगम को संवैधानिक दर्जा दिया गया तथा संविधान  में भाग 9 क जोड़ा गया जो 1 जून 1993 से लागू हुआ इस संशोधन के द्वारा संविधान के भाग 9 क में अनुच्छेद 243(P) से 243(ZG)  तक कुल 18 अनुच्छेद जोड़े गए जो नगर पालिका निगम से संबंधित थे इस संशोधन के द्वारा संविधान की 12वीं अनुसूची में नगर पालिका निगम के लिए 18 विषय प्रदान किए गए जिन पर नगर पालिका निगम कार्य कर सकते हैं

मध्यप्रदेश में (नगरीय निकाय) नगरीय स्वशासन

मध्य प्रदेश का प्रथम नगरपालिका अधिनियम 1956 में लागू किया गया था जिसके आधार पर नगर निगम का गठन किया गया

मध्य प्रदेश सरकार द्वारा जुलाई 1957 में गठित समिति की रिपोर्ट के आधार पर मध्य प्रदेश में नगर पालिका अधिनियम 1961 पारित किया गया

74वां संविधान संशोधन अधिनियम 1992 जोकि 30 दिसंबर 1993 को मध्यप्रदेश विधानसभा में प्रस्तुत किया गया तथा इसके कार्यान्वयन के लिए नगरपालिका अधिनियम 1994 पारित किया गया मध्यप्रदेश में तीन स्तरीय नगरीय शासन व्यवस्था लागू की गई था 12 अनुसूची में नगर पालिका निगम को 18 कार्य सौंपी गयें

मध्यप्रदेश में नगरीय निकाय के तीन स्तर 

नगर पंचायत

ग्रामों से नगर की ओर संक्रमित क्षेत्रों में नगर पंचायत का गठन किया जाता है नगर पंचायतों में वार्डों की संख्या 15 होती है नगर पंचायतों में 5000 से अधिक एवं 20,000 से कम जनसंख्या होती है नगर पंचायत के पार्षदों और अध्यक्षों का चुनाव सीधे मतदान द्वारा होता है इसका राजनीतिक प्रमुख नगर पंचायत अध्यक्ष तथा प्रशासनिक प्रमुख अधिकारी मुख्य नगरपालिका अधिकारी होता है वर्तमान में मध्यप्रदेश में 292 नगर पंचायत है

नगर पालिका

वर्तमान में मध्यप्रदेश में 99 नगर पालिका है नगर पालिकाओं में वार्ड संख्या 15 से 40 होगी  20,000 से अधिक एक लाख से कम जनसंख्या वाले क्षेत्रों में नगर पालिका का गठन किया जाता है नगर पालिका के अध्यक्ष व पार्षदों का चुनाव सीधे मतदान द्वारा होता है नगर पालिका उपाध्यक्ष का चुनाव पार्षदों द्वारा अप्रत्यक्ष रीति से होता है नगर पालिका का राजनीतिक प्रमुख नगर पालिका अध्यक्ष तथा प्रशासनिक प्रमुख मुख्य कार्यपालन अधिकारी होता है

नगर निगम

नगर निगम में पार्षदों की न्यूनतम संख्या 40 तथा अधिकतम 85 होगी तथा नगर निगम क्षेत्र में आबादी 5 लाख  से अधिक होना चाहिए नगर निगम पार्षदों व महापौर का चुनाव प्रत्यक्ष रीति से होता है महापौर को मेयर भी कहा जाता है महापौर नगर का प्रथम नागरिक होता है नगर निगम का राजनीतिक प्रमुख महापौर होता है  तथा प्रशासनिक प्रमुख निगमायुक्त होता है नगर निगम की मुख्य समिति मेयर इन काउंसिल कहलाती है महापौर इस समिति का पदेन अध्यक्ष होता है नगर निगम में पदेन सदस्य लोकसभा सदस्य राज्यसभा सदस्य विधान सभा सदस्य होते हैं वर्तमान में मध्यप्रदेश में 18 नगर निगम है

List of nagar nigam in M P

  1.  इंदौर 
  2. भोपाल 
  3. जबलपुर 
  4. ग्वालियर 
  5. सागर 
  6. रीवा 
  7. उज्जैन 
  8. खंडवा 
  9. बुरहानपुर 
  10. रतलाम 
  11. देवास 
  12. सिंगरौली 
  13. भिंड 
  14. मुरैना 
  15. छिंदवाड़ा 
  16. सतना 
  17. कटनी 
  18. दतिया

 

महत्वपूर्ण बिंदु

73 व 74 वें संविधान संशोधन के बाद अनुच्छेद 243 के अंतर्गत प्रत्येक 5 वर्ष बाद स्थानीय संस्थाओं की वित्तीय स्थिति का निरीक्षण करने के लिए मध्यप्रदेश में 14 जून 1994 को राज्य वित्त आयोग का गठन किया गया

मध्यप्रदेश में पंचायती राज्य संस्थान तथा स्थानीय निकायों के निर्वाचन में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण की व्यवस्था 2009-10 के चुनाव से लागू है

1907 में दतिया को नगरपालिका बनाया गया मध्य प्रदेश की पहली नगर पालिका थी

मध्य प्रदेश का पहला नगर निगम 1864 में जबलपुर को बनाया गया था

मध्य प्रदेश राज्य निर्वाचन आयुक्त बसंत प्रताप सिंह

 

संविधान का भाग 9 पंचायत

73वें संविधान संशोधन अधिनियम 1992 के द्वारा संविधान में भाग 9 में पंचायत जोड़ा गया जोड़े गए जिसमें अनुच्छेद 243 से 243 (o) तक कुल 16 अनुच्छेद रखे गए हैं जो निम्न प्रकार हैं (ट्रिक के माध्यम से इन अनुच्छेदों को याद रखने योग्य बनाने की कोशिश की गई है)

भाग 9 पंचायत

Trick- पंचायत में 5 और 4 बराबर 9 हैं अतः  हम याद रख सकते हैं कि पंचायत का संबंध भाग 9 से है

अनुच्छेद 243 – परिभाषा से संबंधित

अनुच्छेद 243 A – ग्रामसभा से संबंधित

अनुच्छेद 243 B – ग्राम पंचायतों का गठन

अनुच्छेद 243 C – संरचना पंचायतों की

Trick सी(c) से संरचना

अनुच्छेद 243 D – पद आरक्षण

Trick- पद अर्थात D for  designation 

अनुच्छेद 243 F- अयोग्यता से संबंधित

Trick- अयोग्यता अर्थात F for fail 

अनुच्छेद 243 G – पंचायतों की शक्ति, अधिकार, उत्तरदायित्व से संबंधित

Trick- शक्ति और अधिकारों का जलवा होता है अर्थात G for जलवा

अनुच्छेद 243 H – करारोपण अर्थात पंचायतों के कारण लगाने से संबंधित है

Trick- करारोपण को हम इस तरह से पढ़ सकते हैं  कर हर (हर for H) या हर घर कर

अनुच्छेद 243 I – वित्त आयोग से संबंधित

Trick- I (आई) अर्थात मै for M , M for money  वित्त आयोग

अनुच्छेद 243 J – लेखासंपरीक्षा- पंचायतों के लेखा परीक्षण से संबंधित है

Trick- J  jotter पेन , पेन से लिखते हैं लेख

अनुच्छेद 243 K – निर्वाचन आयोग पंचायत चुनाव से संबंधित हैं

Trick- चुनाव अर्थात इलेक्शन-कलेक्शन( K फॉर कलेक्शन)

अनुच्छेद 243 L- संघ क्षेत्रों पर लागू 

अनुच्छेद 243 M- कुछ क्षेत्रों पर लागू ना होना 

अनुच्छेद 243 N – विद्यमान विधि और पंचायतों का बना रहना 

अनुच्छेद 243 O –  निर्वाचन संबंधी मामलों में न्यायालय का हस्तक्षेप वर्जित

(ऊपर बताई गई Trick  हमारी अपनी सोच है हो सकता है आपकी सोच से मिलान न खाए आपको समझ में आए तो आप इनका उपयोग कर सकते हैं इन शब्दों का कोई सीधा-सीधा अर्थ नहीं है शब्दों को रिलेट करने की कोशिश की गई है आप इन ट्रकों को नजरअंदाज भी कर सकते हैं)

संविधान का भाग 9 क नगर पालिका निगम

74 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1992 के द्वारा संविधान के भाग संविधान में भाग 9 क जोड़ा गया जिसमें 243P से 243ZG तक कुल 18 अनुच्छेद है जो निम्न प्रकार

अनुच्छेद 243P – परिभाषा 

अनुच्छेद 243Q – नगर पालिका का गठन 

अनुच्छेद 243R –  नगर पालिकाओं की संरचना 

अनुच्छेद 243S – वार्ड समितियों का गठन 

अनुच्छेद 243T –  स्थानों का आरक्षण

अनुच्छेद 243U –  अवधी 

अनुच्छेद 243V – अयोग्यता

अनुच्छेद 243W – शक्ति अधिकार और उत्तरदायित्व

अनुच्छेद 243X – करारोपण 

अनुच्छेद 243Y – वित्त आयोग 

 अनुच्छेद 243 Z -लेखासंपरीक्षा

अनुच्छेद 243ZA – निर्वाचन आयोग नगर पालिकाओं के  

अनुच्छेद 243ZB – संघ राज्य क्षेत्रों पर लागू होना 

अनुच्छेद 243ZC –  इस भाग का कतिपय क्षेत्रों का नाम होना 

अनुच्छेद 243ZD – जिला योजना समिति 

 अनुच्छेद 243ZE –  महानगर योजना समिति 

 अनुच्छेद 243ZF विद्यमान विधियों और नगर पालिकाओं का बना रहना

 अनुच्छेद 243ZG –  निर्वाचन संबंधी मामलों में न्यायालय का हस्तक्षेप वर्जित

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